मैं तुम्हे कितना जान पाया,, मैं नहीं जनता इस दुनिया के रीती रिवाजो को, मैं नहीं मानता......... भले ही मैं कभी ,, तुम्हारी बातों को न समझ पाया पर पता नहीं, तेरी खामोश कदमो की आहट मैं कैसे जान पाया.......... तुम्हारी खामोश नजरो ने,, भले ही मुझे अनदेखा किया हो पर इन खामोश नजरो ने ही मुझे जीना सिखाया .......... तुम हमारे हो गए,, पर हम न हो सके तुम्हारे ये जिन्दगी यूँही कट जाये तेरी यादों के सहारे ............
Wednesday, December 23, 2009
ख़ामोशी
Posted by RISHAV-VERMA......... at 5:58 AM
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