सच तो ये है इस दिल मे तुम्हारी जगह न थी कभी
होठों पे नाम था पर आँखों मे नमी न थी कभी |
कितनी रातों को नींद आने से पहले याद तो किया तुम्हे
पर नींद मे खोने क बाद, उन सपनो मे तुम्हारी जगह न थी कभी |
नशे मे तो हमेशा तेरे प्यार का नशा ही छाया
पर बिन मदिरा के क्यू तुम्हे कभी आवाज़ न लगाया |
यूँ तो तुमसे बात करने पर घबरा जाता हूँ हरवक्त
पर क्यू हरवक्त बात करने की इच्छा होती है कभी-कभी |
इक उम्मीद तो हमेशा तुम्हारे लिखे शब्द मुझमे जगाते है
पर क्यू ये हरवक्त गैरों के लिए संबोधित नज़र आते हैं |
Thursday, January 21, 2010
MADHOSHI
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