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Sunday, April 11, 2010

तुम्ही बोलो ,,मुझे पता नहीं ,

कैसे हरवक्त तुम्हारी aahat  सुन कर उठ जाता हूँ .
तुम्हारे करीब होने का इक एहसास होता है|
तुम्हे पाने को भी दिल मे कसक होती है |
तुम्हे दूर कर इक शकुन भी dhundta हूँ
तुम्ही बोलो,मुझे पता नहीं 
वो राखी क्यू उस वक़्त ख़त्म हुई थी.
क्यू अंजानो क साथ कावेरी गई थी.
क्यू मेरी बातों का इशारे से जवाब दिया.
क्यू तुमसे मिलने को,खुद को वही ठहरा  दिया 
तुम्ही बोलो,मुझे नहीं पता
क्यू तुमने मेरे ख़त को वापस न किया 
फिर क्यू मुझे अपने रूह के  करीब किया
तुम्हारे बिना भी तो  मैं  जी लेता हूँ 
फिर भी क्यू तुम्हारे इशारे का इंतजार करता हूँ
तुम्ही बोलो,मुझे नहीं पता
क्यू मेरी बातों पे हसकर इक इजहार किया
क्यू इक लहर उठा कर, फिर से उसे सुला दिया
दिल मे किसी और को भी जमी क्यू नहीं देती
इक बार फिर से सूने दिल मे हलचल मचा क्यू नहीं देती
तुम्ही बोलो,मुझे नहीं पता
मेरी लबो को सुन क्यू तुमने अपने शब्दों को  बदल  लिया 
और फिर क्यू मुझे अपना बना कर इक पल मे बेगाना किया
क्यू अपने लिखे शब्द मुझे अधूरे नज़र आते हैं
क्यू मेरे मन के बोल,मन मे ही रह जाते हैं
तुम्ही बताओ ,मुझे नहीं पता.

5 comments:

Randhir Singh Suman said...

nice

RISHAV-VERMA......... said...

thnx sir,

nikkamakd said...

really wonderful creation. khuda kare MBA na karke shayar ban ja. sala wah wah hum karenge. wada raha.

RISHAV-VERMA......... said...

BHAI.,.,SAYAR NAI.,.,.,ACT.,.HIHIHI

amit said...

great.....