देखा था , मैंने आँखों मे मचलती हुई गुस्ताखिया,
इक लड़ने की ताकत , कुछ ख्वाहिसे,
थोरी बंद, थोरी खुली , कुछ हकीकते समझती
इक लड़की चली आ रही थी .
इक हसी लड़की जो बातें बनाती
चमकते आँखों से मुझे चिढाती
बातें करते दिन काटते ,
और यादों के सहारे रातें
देखा था उसे नजदीक आते हुवे,
पैरो पर संभलना चाहते हुवे ,
बातें अनकही कुछ कहनी थी
नयापन तालास्ते, आंसमा चाहते
कुछ बातें शायद भुलानी थी
देखा था
खुद को, उसके खातिर लड़ते हुवे,
करीब होते हुवे ,
चुपके से बातें कहते हुवे ,
मेरे खातिर शर्माती,
नजरे झुकाती,
जिन्दगी खुशियों से भड़ते,
देखा है मैंने
तुहारी सोच में गिरफ्फ्तार होके ।