आज रात चाँद को देखा
इमारतों से ढकी हुई थी
जमीं से तो दिखती नहीं
सो हमने छत पे चढ़ के देखा ।
हलके बादलों से धुन्द्लाते
चाँद को देखा ।
ना जाने कितने देर
बादलो से ढकी रही
पर बादल तो बदलते हैं
तब जा के मैंने चाँद को देखा
नजरे मिलाते ही फिर से
बाद्लों के पीछे
छुप जाते देखा ।
और जैसे सिर्फ मेरे लिये
हवा को चाँद से बाद्लों को दूर करते देखा ।
अब ये पेड़
जो मेरे छत से ऊपर बढ़ गया है
चाँद को अपनी टहनियों और
पत्तों से छुपा रहा है
पर मैंने
हवाओं को
टहनियों से
अटखेलियाँ कर , झकझोर कर
उन्हें दूर करते देखा ।
फिर बादल ने
जैसे अपने घर मे
क़ैद कर लिया उसे
काली घटाओ से ,
पूरे आकाश मे डेरा जमा लिया ।
पर आज बादल छट चुके हैं
और आसमाँ साफ़ है
चाँदनी से ये छत सफ़ेद है
बस इक कमरे की दीवार ने
और मेरी परछाई ने
अँधेरा किया हुआ है.
इमारतों से ढकी हुई थी
जमीं से तो दिखती नहीं
सो हमने छत पे चढ़ के देखा ।
हलके बादलों से धुन्द्लाते
चाँद को देखा ।
ना जाने कितने देर
बादलो से ढकी रही
पर बादल तो बदलते हैं
तब जा के मैंने चाँद को देखा
नजरे मिलाते ही फिर से
बाद्लों के पीछे
छुप जाते देखा ।
और जैसे सिर्फ मेरे लिये
हवा को चाँद से बाद्लों को दूर करते देखा ।
अब ये पेड़
जो मेरे छत से ऊपर बढ़ गया है
चाँद को अपनी टहनियों और
पत्तों से छुपा रहा है
पर मैंने
हवाओं को
टहनियों से
अटखेलियाँ कर , झकझोर कर
उन्हें दूर करते देखा ।
फिर बादल ने
जैसे अपने घर मे
क़ैद कर लिया उसे
काली घटाओ से ,
पूरे आकाश मे डेरा जमा लिया ।
पर आज बादल छट चुके हैं
और आसमाँ साफ़ है
चाँदनी से ये छत सफ़ेद है
बस इक कमरे की दीवार ने
और मेरी परछाई ने
अँधेरा किया हुआ है.
5 comments:
अँधेरा छंटता ही होगा...चाँद हौले से भीतर आता ही होगा.....
:-)
अनु
ky bat hai.... ultimate..
superb..keep on going :))
gr8 thought running with each lines, loved it.awsm!!!
बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना...
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