Wednesday, September 11, 2013
Friday, July 5, 2013
चाँद
आज रात चाँद को देखा
इमारतों से ढकी हुई थी
जमीं से तो दिखती नहीं
सो हमने छत पे चढ़ के देखा ।
हलके बादलों से धुन्द्लाते
चाँद को देखा ।
ना जाने कितने देर
बादलो से ढकी रही
पर बादल तो बदलते हैं
तब जा के मैंने चाँद को देखा
नजरे मिलाते ही फिर से
बाद्लों के पीछे
छुप जाते देखा ।
और जैसे सिर्फ मेरे लिये
हवा को चाँद से बाद्लों को दूर करते देखा ।
अब ये पेड़
जो मेरे छत से ऊपर बढ़ गया है
चाँद को अपनी टहनियों और
पत्तों से छुपा रहा है
पर मैंने
हवाओं को
टहनियों से
अटखेलियाँ कर , झकझोर कर
उन्हें दूर करते देखा ।
फिर बादल ने
जैसे अपने घर मे
क़ैद कर लिया उसे
काली घटाओ से ,
पूरे आकाश मे डेरा जमा लिया ।
पर आज बादल छट चुके हैं
और आसमाँ साफ़ है
चाँदनी से ये छत सफ़ेद है
बस इक कमरे की दीवार ने
और मेरी परछाई ने
अँधेरा किया हुआ है.
इमारतों से ढकी हुई थी
जमीं से तो दिखती नहीं
सो हमने छत पे चढ़ के देखा ।
हलके बादलों से धुन्द्लाते
चाँद को देखा ।
ना जाने कितने देर
बादलो से ढकी रही
पर बादल तो बदलते हैं
तब जा के मैंने चाँद को देखा
नजरे मिलाते ही फिर से
बाद्लों के पीछे
छुप जाते देखा ।
और जैसे सिर्फ मेरे लिये
हवा को चाँद से बाद्लों को दूर करते देखा ।
अब ये पेड़
जो मेरे छत से ऊपर बढ़ गया है
चाँद को अपनी टहनियों और
पत्तों से छुपा रहा है
पर मैंने
हवाओं को
टहनियों से
अटखेलियाँ कर , झकझोर कर
उन्हें दूर करते देखा ।
फिर बादल ने
जैसे अपने घर मे
क़ैद कर लिया उसे
काली घटाओ से ,
पूरे आकाश मे डेरा जमा लिया ।
पर आज बादल छट चुके हैं
और आसमाँ साफ़ है
चाँदनी से ये छत सफ़ेद है
बस इक कमरे की दीवार ने
और मेरी परछाई ने
अँधेरा किया हुआ है.
Posted by RISHAV-VERMA......... at 12:52 AM 5 comments
Monday, April 22, 2013
ख्वाब
देखा था , मैंने आँखों मे मचलती हुई गुस्ताखिया,
इक लड़ने की ताकत , कुछ ख्वाहिसे,
थोरी बंद, थोरी खुली , कुछ हकीकते समझती
इक लड़की चली आ रही थी .
इक हसी लड़की जो बातें बनाती
चमकते आँखों से मुझे चिढाती
बातें करते दिन काटते ,
और यादों के सहारे रातें
देखा था उसे नजदीक आते हुवे,
पैरो पर संभलना चाहते हुवे ,
बातें अनकही कुछ कहनी थी
नयापन तालास्ते, आंसमा चाहते
कुछ बातें शायद भुलानी थी
देखा था
खुद को, उसके खातिर लड़ते हुवे,
करीब होते हुवे ,
चुपके से बातें कहते हुवे ,
मेरे खातिर शर्माती,
नजरे झुकाती,
जिन्दगी खुशियों से भड़ते,
देखा है मैंने
तुहारी सोच में गिरफ्फ्तार होके ।
Posted by RISHAV-VERMA......... at 7:39 AM 2 comments
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