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Tuesday, February 17, 2015

बिखराओं

ये क्या हो गया जो
शब्द कागज़ पे टिकते नही 
रुई के बूते लौ  जल रहा जो
जीवन उस द्धीप मे  दीखता नहीं
छुटा है  हाथों से जो
टूटने की क्यूँ  आवाज़ नहीं
जो गानें  यूँ गुनगुना रहे
सुनने वाला उन्हें कोई नहीं
रातों को उठकर क्या पाया जो
आँखों मे कभी समेटा  नहीं
चेहरा आँखों में भटकता है जो
धुंधला कयूँ  होता नहीं
शायद यादों मे बस  गयी हो
ये साँसें ही क्यूँ  चली जाती नहीं
क्यों सब जानते हुवे भी 
तुम्हे भुलता  नहीं 

वो क्या खो गया जो ,
मिल के भी  मिला नही 


Wednesday, September 11, 2013




कॉपी खोल,
उसमे हाथो  लिखी तुम्हारी जन्म तारीख देखकर
आज भी कुछ नयापन अहसास होता है
आज भी तुम्हारे लिखे शब्दों  को देखकर
कुछ कविताये और कुछ आवारापन सा  होता है 

Friday, July 5, 2013

चाँद

आज रात चाँद को देखा 
इमारतों से ढकी हुई थी 
जमीं से तो दिखती नहीं 
सो हमने छत पे चढ़ के देखा । 

हलके बादलों से धुन्द्लाते 
चाँद को देखा । 

ना जाने कितने देर 
बादलो  से ढकी रही 
पर बादल तो बदलते हैं 
तब जा के मैंने चाँद को देखा 

नजरे मिलाते ही फिर से 
बाद्लों   के पीछे 
छुप  जाते देखा । 

और जैसे सिर्फ मेरे लिये 
हवा को  चाँद से बाद्लों  को दूर करते देखा । 

अब ये पेड़ 
जो मेरे छत से ऊपर बढ़ गया है 
चाँद को अपनी टहनियों और 
पत्तों  से छुपा रहा है

पर मैंने 
हवाओं  को 
टहनियों से 
अटखेलियाँ कर , झकझोर कर 
उन्हें दूर करते देखा ।  

फिर बादल ने 
जैसे अपने घर मे 
क़ैद कर लिया उसे 
काली  घटाओ से ,
पूरे आकाश मे डेरा जमा लिया । 

पर आज बादल छट चुके हैं 
और आसमाँ साफ़  है 
चाँदनी  से ये छत सफ़ेद है 
बस इक कमरे की दीवार ने 
और मेरी परछाई  ने 
अँधेरा किया हुआ है. 

Monday, April 22, 2013

ख्वाब

देखा  था , मैंने  आँखों मे  मचलती हुई गुस्ताखिया,
इक लड़ने  की ताकत , कुछ ख्वाहिसे,  
थोरी बंद, थोरी खुली , कुछ हकीकते समझती 
इक लड़की चली आ रही थी .
इक  हसी  लड़की जो बातें   बनाती 
चमकते आँखों से  मुझे चिढाती
बातें करते दिन काटते ,
और  यादों के सहारे रातें 
देखा था उसे नजदीक आते  हुवे,
पैरो पर संभलना   चाहते  हुवे ,
बातें अनकही कुछ कहनी थी
 नयापन तालास्ते, आंसमा  चाहते 
कुछ बातें शायद  भुलानी थी 
देखा था 
खुद को, उसके खातिर लड़ते हुवे, 
करीब होते हुवे ,
चुपके से बातें कहते हुवे ,
मेरे खातिर शर्माती,
नजरे झुकाती,
जिन्दगी खुशियों से भड़ते, 
देखा है मैंने  
तुहारी सोच में  गिरफ्फ्तार होके । 




















Saturday, June 30, 2012

 बाहर शहर  की भीड़ है
भीड़ मे  कहाँ  जायेगा
इस बीहरपन मे जो शांति    है
 वो शांति  और  कहाँ पायेगा
चल  छोड़ दुसरो  से बैर कहाँ है
दुसरो  की बातों का क्यूँ  गुस्सा गायेगा
आँखों मे अगर नींद न है
थकान को छोड़ प्यार क्यूँ  कोसा जायेगा
जो  हर इक कस खिचा  है
कही धुँआ  भी उठायेगा
जिन कर्मो का बीज बोआ  है
फल उसका खुद ही तो खायेगा
कुछ लोग अच्छे , कुछ बुरे  होते  हैं
पर  हर बुरे मे  कुछ अच्छाई भी दिखेगा
कभी अच्छा ,कभी  बुरा होता  है
और हर बुरे से कुछ अच्छाई भी पायेगा
आँखों  से जो रिश्ता जुड़ा  है
दिल उसे कैसे तोड़ पायेगा ...

Tuesday, March 27, 2012

SOCH

किनारा जो नजर नहीं आता
शहर के पानी झरने* लगते हैं
खुद की जो खबर न रहती है 
खुद मे ही जब खो जाते हैं
ये भी जीना क्या जीना है
जो रातों की न खबर रहती है
कुछ आवारा सा फिरते हैं
दिन यूँ ही कट जाता है
हम शब्द कहाँ ढूंड पाते  हैं
बेघर परिंदों की तरह इक घोसला बस बुन पाते  हैं
बातों से तुम्हे जो याद करते हैं
बातों बातों मे खो जाते हैं
छाव से भरी ठण्ड हवा है
खुला छत कितना गर्म है
(*झरने -पानी का झरना )


Friday, March 23, 2012

Ansuni aawaz



कोने  मे  परे  खटिये  पे 
जो  लेटा  रहता  है  दिल 
अंदर  से  आवाज़  लगाता है 
जा  आ  उनसे  मिल..


पैमाने जो राहों मे चलके हैं 
उन्हें उठाये लिये चल 
खालीपन अगर दिल मे है
नए ख्वाब , नए यादों संग चलता चल



Monday, April 25, 2011

इक प्यारी सी दुनिया हम बसाये 
इस बार नहीं तो अगली जन्म चलेगा 
तुम तक हम न पहुँच पाये
शायद ये अफ़सोस रहेगा.
इक आशियाना  बता दो 
जहाँ केवल मैं और तू हों
तेरा हाथ हम न थाम  पाये
शायद ये जुस्तजू  ही  रहेगा  



Thursday, March 3, 2011

तुम्हे याद यूँ करते हैं
कि बाँतें भूल तुम्हारी बात करते हैं
तस्वीरे जहन मे यूँ आती हैं 
कि तुम्हे  फिर झरोखे से  ढूँढने लगे हैं 

तुम्हे सोचते हैं तो इतने करीब होते हैं 
कि इक छुवन से बिखरे टू करे  दिल के सिमट जाते हैं
यूँ लबों के बोले स्पर्श से 
दिल के फूल महक उठते हैं 

तुम्हे कभी कभी महसूस भी करते हैं 
कि इन पन्नो को छोर तुम्हे ढूँढ़ते हैं 
यूँ  तन्हा है जिंदगी कि खुद से बेखबर हैं
कि   बस इक तेरा साथ  नहीं  है




Friday, December 3, 2010

आज मैं अकेला हूँ 
साथ कुछ तन्हाईयाँ हैं.
आज मैं तनहा  हूँ
साथ  कुछ अकेलापन है.
आज चलते हुवे  भी,
ठहरा हुआ हूँ.
साथ दुनिया से छुपे जज्बात ,
दिल मे बसे  कुछ अरमान हैं.