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Tuesday, March 27, 2012

SOCH

किनारा जो नजर नहीं आता
शहर के पानी झरने* लगते हैं
खुद की जो खबर न रहती है 
खुद मे ही जब खो जाते हैं
ये भी जीना क्या जीना है
जो रातों की न खबर रहती है
कुछ आवारा सा फिरते हैं
दिन यूँ ही कट जाता है
हम शब्द कहाँ ढूंड पाते  हैं
बेघर परिंदों की तरह इक घोसला बस बुन पाते  हैं
बातों से तुम्हे जो याद करते हैं
बातों बातों मे खो जाते हैं
छाव से भरी ठण्ड हवा है
खुला छत कितना गर्म है
(*झरने -पानी का झरना )


Monday, April 26, 2010

BEQARARI

मेरे लिखे शब्दों मे कुछ इमोसन  और कुछ घृणा लाने वाली,
तुम्हारे लिए ये इक दो शब्द .,.,.,.,.,.
सबसे पहले तो तुमसे  प्यार करने का मतलब क्या है.
तुम्हे दिल से न जुदा करने का मतलब क्या है.
इक भी खुद का प्रेम संदेस तो  न लिखा तुम्हे
फिर भी तुम्हे सालो दर सालो याद करने की सजा क्या है
फिर से इन शब्दों मे घृणा क्या है
अभी सोचता हूँ , कैसे तुम मुझे प्रेरित कर सकती हो
कभी सोचता हूँ , कैसे तुम मुझे बांध सकती हो,
तुमसे तो कभी दिल की बातें न की ,
फिर कैसे,तुम आज भी मेरी पलके नम कर जाती हो
कैसे मुझे आज भी प्यार होने का इक अहसास दिला जाती हो
मैं आज भी तुम्हारे लिए सही इमोसन dhundta  हूँ
तुम्हारे करीब हो कर आज भी तुमसे कुछ बातें करता हूँ