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Monday, April 22, 2013

ख्वाब

देखा  था , मैंने  आँखों मे  मचलती हुई गुस्ताखिया,
इक लड़ने  की ताकत , कुछ ख्वाहिसे,  
थोरी बंद, थोरी खुली , कुछ हकीकते समझती 
इक लड़की चली आ रही थी .
इक  हसी  लड़की जो बातें   बनाती 
चमकते आँखों से  मुझे चिढाती
बातें करते दिन काटते ,
और  यादों के सहारे रातें 
देखा था उसे नजदीक आते  हुवे,
पैरो पर संभलना   चाहते  हुवे ,
बातें अनकही कुछ कहनी थी
 नयापन तालास्ते, आंसमा  चाहते 
कुछ बातें शायद  भुलानी थी 
देखा था 
खुद को, उसके खातिर लड़ते हुवे, 
करीब होते हुवे ,
चुपके से बातें कहते हुवे ,
मेरे खातिर शर्माती,
नजरे झुकाती,
जिन्दगी खुशियों से भड़ते, 
देखा है मैंने  
तुहारी सोच में  गिरफ्फ्तार होके ।