ये क्या हो गया जो
शब्द कागज़ पे टिकते नही
रुई के बूते लौ जल रहा जो
जीवन उस द्धीप मे दीखता नहीं
छुटा है हाथों से जो
टूटने की क्यूँ आवाज़ नहीं
जो गानें यूँ गुनगुना रहे
सुनने वाला उन्हें कोई नहीं
रातों को उठकर क्या पाया जो
आँखों मे कभी समेटा नहीं
चेहरा आँखों में भटकता है जो
धुंधला कयूँ होता नहीं
शायद यादों मे बस गयी हो
ये साँसें ही क्यूँ चली जाती नहीं
क्यों सब जानते हुवे भी
तुम्हे भुलता नहीं
क्यों सब जानते हुवे भी
तुम्हे भुलता नहीं
वो क्या खो गया जो ,
मिल के भी मिला नही
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